खामोशियों की आवाजें,इतनी तेज़ क्यों होती हैं, मेरी तन्हाई के पास,तेरा ख्याल ठहरा क्यों होता है मेरी जिंदगी की किताब के हर पन्ने पर,क्यों लिखा है तेरा नाम नंबरों की तरह तेरे साथ बीता दिन सर्दियों के दिन सा,इतना सिकुड़ा हुआ क्यों होता है तेरे जाते ही वो ही दिन,गर्मी के दोपहर सा गहरा क्यों होता है मेरी रात के सिहराने पर,तेरी सिलवटें क्यों होती हैं,मेरी सुबहों पर तेरा,पहरा क्यों होता है बारिशों की चाप में तेरी,आवाज़ क्यों होती है,कोई भी वादी हो,उस पर तेरा,कोहरा क्यों होता है कहीं भी जाऊं,कहीं भी रहूँ,भीड़ का हर चेहरा,तेरा चेहरा क्यों होता है
-मनु
ज़िन्दगी जब बहती है तब पानी पर भी कदमो के निशाँ बनाती हुई चलती है, उम्र पर एक दौर ऐसा ज़रूर आता है, जिसमे ज़हन हर लम्हा परवाज़ भरता है कहीं ये नदी की तरह गुज़र जाता है, कहीं बर्फ की झील साजम जाता है, जहाँ ये झील है वहाँ रिसता रहता है, पिघलता रहता है न बहता है पूरी तरह और न थमता है, उन साँसों की तरह जो जाकर लौटती रहती हैं, ऐसे ही तुम्हारी ख़ामोशी में एक झील बनकर मौजूद हूँ मैं -मनु
वादों की परछाईयाँ
वादों की परछाईयाँ किताब विमोचन कार्यक्रम








जज़्बात

वो ख़्याल
जो तेरी
रहगुज़र से हो कर गुज़रे
बस
वही जज़्बात है
... बस
वही
जज़्बात है
-मनु
जज़्बात किताब विमोचन कार्यक्रम







